मैं जा रहा था वादियों में,
ढूँढ रहा था जिंदगी के राज़,
मिला मुझे एक संत, एक ज्ञानी,
मैंने पूछा उससे, जीवन का ज्ञान क्या है,
कैसे करूँ मैं अपना कल्याण, कैसे पाऊँ शांति का आनंद।
संत ने मुस्कुराकर कहा,
ध्यान किया कर (अंतर की खोज में)
भजन गाया कर (भगवान की प्राप्ति के लिए)
नमन किया कर (परमात्मा की स्तुति के लिए)
जाप किया कर (मंत्र जप का सहारा लिया कर)
प्राणायाम किया कर (शरीर और मन को शुद्ध किया कर)
योग किया कर (शरीर और आत्मा को एक साथ लाया कर)
स्नान किया कर (शरीर को पवित्रता का अनुभव दिया कर)
दान किया कर (गरीबों और आश्रितों की सेवा में लगा रह)
मैं सोचता रहा, संत के शब्दों को,
जीवन के हर पहलू में कैसे पाऊँ सकून,
तो मैंने पूछा फिर, कैसे बनूँ मैं एक अच्छा व्यक्ति,
कैसे समझूँ मैं अपने परिवार और रिश्ते की मिठास,
कैसे व्यवसाय में कमाऊँ मैं सफलता का प्रसाद।
संत ने मुस्कुराकर फिर से बताया,
संवाद रखा कर (प्रेम और सम्मान से)
परिवार के साथ (सहज और सजग बने रह)
रीतिरिवाज समझा कर (परंपराओं का सम्मान करो)
मेहनत किया कर (व्यवसाय में निष्ठा और संघर्ष से)
मैं अब समझ गया, जीवन का ज्ञान,
संत के शब्दों ने दिया मुझे दिशा,
धन्यवाद करके मैंने अलविदा कहा,
वादियों से लौटकर, जीवन के नए अनुभवों में, मैं चला।
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